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ऐसा सुना है कि कर्ण अर्जुन का वध कर सकता था. किन्तु कर्ण का सारथी बनाया गया शल्य को . शल्य पांडवों के मामा थे. अब कौरवों की कारगुजारी से उन्हें कौरव पक्ष से युद्ध में सम्मिलित होना पड़ा. कर्ण के सारथी के रूप में उन का काम कर्ण के मन को भेद देने का था. वो कर्ण के हर प्रहार को कम और अर्जुन के हर प्रहार को बढ़ा चढ़ा कर वर्णित करते थे. यह बात कर्ण को हतोत्साहित करती वह हर प्रहार पहले से प्रबल करने की कोशिश करता …किन्तु मन में शंका …और फिर वही ..शल्य की बातें… वह इन बातों से महारथी होते हुए भी भीतर से असहाय सा हो गया.
अधिकाँ मीडिया भी इसी प्रकार इस देश में शल्य का काम करती हुयी …व्यर्थ की बातों को बहस का मुद्दा बना कर, काग समान अपने समूह गान चलाये रखते हैं . जिन बातों को उठाना चाहिए ..जिन बातों को समाज को प्रेरणा मिलती हो , ऐसी खबरों पर कोई चर्चा नहीं.. हाँ ऐसी बातों को सब के सब चैनल पूरा पूरा दिन अपने चैनल पर पैनल बैठा कर कई कई घंटे की बहस कवाते जैसे …फ़लाना अभिनेत्री की मौत कैसे हुयी, इस या उस राज्य के मुख्यमंत्री / नेता बताएं कि यदि भारत माता की जय नहीं बोला तो क्या कार्यवाही होगी, घोड़े की टांग तोड़ने से विधायक को क्या हासिल हुआ, बच्चा बोरवेल में गिरा – कैसे निकाला गया, बाबा ने जहाँ सोना निकलेगा बताया वहां क्यों नहीं निकला, पकाया गया मांस किस पशु का था, फिल्म कौन सा कलाकार हथियार रखने के अपराध में कितनी बार में अन्दर गया और कितनी बार बाहर आया …आदि आदि ..
इन बातों से देश को प्रगति कैसे मिलती है ..कौन कैसे प्रेरित होता है .
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