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इन्टरनेट पर प्रचलित एक अखबार में खबर छपी है
“….भारत के बीजेपी शासित राज्य बारी – बारी से गौहत्या पर रोक लगा रहे हैं. इसके साथ ही गौमांस की बिक्री और इसे खाने वालों के लिए कड़ी सजा का प्रावधान है. धर्मनिरपेक्ष, हिंदू बहुल राष्ट्र भारत में यह धर्म से जुड़ा मुद्दा है…”
इसी अखबार में यह भी छापा गया है कि देश के 29 राज्यों में से 24 में पहले से ही गोहत्या पर प्रतिबंध है, भारत की गिनती दुनिया के कुछ सबसे बड़े बीफ निर्यातकों में होती है. इस पेशे में ज्यादातर देश की मुसलमान आबादी लगी है. ज्यादातर निर्यात किया जाने वाला मांस नर या दूध ना देने वाली भैंसों का होता है, जिनको गायों जितना धार्मिक महत्व नहीं है. पूरे भारत में केवल कुछ ही राज्यों में भैसों को मारने की अनुमति है. 2012 में भारत में 364 करोड़ मेट्रिक टन बीफ का उत्पादन हुआ जिसमें 196 मेट्रिक टन का खपत घरेलू बाजार में हुआ और 168 मेट्रिक टन का निर्यात किया गया.
भारत में हिन्दू बहु संख्यक हैं, किन्तु बहु संख्यक हिन्दुओं की आस्थाओं पर लगातार कुठाराघात करना जैसे अब तक की सरकारों का जिम्मा था. राज्य सरकारें गौ-वंश के वध पर रोक लगा रही हैं तो ये पाश्चात्य जगत के ख़बर देने वाले अखबार दिन रात एक किये हुए हैं ऐसे प्रतिबंधों के खिलाफ लिखने के लिए. यदि इन्हें पशुओं के वध से कोई दिक्कत नहीं है तो क्यों यही पत्रकारों का विशेष वर्ग भारत में हिन्दुओं द्वारा पशु-बलि का विरोध करते हुए लम्बे लम्बे लेख लिखते हैं. क्यों ये उन रीति रिवाजों पर सवाल उठाते हैं जो बहु- संख्यक हिन्दू अपने आस्थाओं के चलते सदियों से चलाये हुए है ?
यदि पशु-बलि में पशुओं के मारे जाने पर विरोध हो रहा है तो गाय भी उस से अलग नहीं ….और गाय ही क्यों कोई भी गौ-वंश का वध विरोध करने योग्य ही है.
और यदि विरोध करना , प्रतिबन्ध लगाना गलत है तो फिर पशु-बलि का विरोध का ढोंग बंद करो . यह दोगलापन ही है जो गौ-वंश के वध पर छाती चौड़ी कर सरेआम बीफ़ पका रहे हैं और गर्व से कह रहे हैं कि वह गौ-मांस बड़े शौक से खाते हैं.
खाते हैं तो खाओ पर जब वही काम जब दूसरा अपने तरीके अंजाम दे तब मोमबत्तियां ले कर मत खड़े होना.
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