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तामसी प्रवृत्ति के हैं हम लोग !! यकीन नहीं है तो यकीन करना ही होगा . शंकराचार्य जी ने एक मरे हुए व्यक्ति, साईं, की भक्ति करने वाले के विरुद्ध कहा . किन्तु तामसिक प्रवृत्ति के लोग हमारे ही भारत के लोग मुकदमे बाज़ी पर आमादा हैं. हम सभी तामसिक तो हैं ही ढोंगी भी हैं. फिर से यकीन करना ही होगा. एक ओर तो हम कृष्ण के वचनों को अमृत मानते हैं, कृष्ण की पूजा करते हैं दूसरी ओर कृष्ण के उपदेश को , गीता-ज्ञान को ही किनारे कर के गीता के उपदेशों के विरुद्ध अपने ही तरीके से आस्थाओं को पनपा रहे हैं, तर्क देते हुए कि जैसे चाहें वैसे आस्था रखेंगे . रखो …नयी आधुनिक व्यवस्था इस बात की पूरी छूट भी देती है . किन्तु जब कोई उस तामसिकता के चलते वचन कहे तो सुनें और गर्व से मानों कि हाँ हम हैं तामसिक . तमोगुणी होने पर शर्म न महसूस करो.
और अब पढ़िए कि गीता में भगवान् श्री कृष्ण ने क्या कहा –
श्रीमद्भगवद्गीता सप्तदश अध्याय में अर्जुन पूछते है – हे कृष्ण, जो मनुष्य शास्त्रवर्णित ईश्वर को छोड़, शास्त्रविधि के विरुद्ध अपनी श्रद्धा से किसी अन्य किसी की उपासना करते है , तो उनकी यह उपासना कैसी हैं ???
भगवान श्री कृष्ण कहते है –
त्रिविधा भवति श्रद्धा देहिनां सा स्वभावजा ।
सात्त्विकी राजसी चैव तामसी चेति तां श्रुणु ॥
— अर्थात मनुष्य में जो शास्त्रीय संस्कार से रहित श्रद्धा उत्पन्न होती है वह तीन प्रकार की है , सात्विकी , राजसी और तामसी ।
आगे कहते है –
यजन्ते सात्त्विका देवान्यक्षरक्षांसि राजसाः ।
प्रेतान्भूतगणांश्चान्ये यजन्ते तामसा जनाः ॥ _
अर्थात् — सात्विक मनुष्य देवों को पूजते है, राजस पुरुष यक्ष आदि को और तामस मनुष्य, “”मरे”” हुये व्यक्तियों/ भूत – प्रेत आदि को पूजते है ।
हमें यह समझ जाना चाहिए कि भूत प्रेत में आस्था रखना कैसा है …
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