उद्गार
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कुछ खबर ऐसी आई है कि गुजरात में ११ रुपये और १७ रूपए की कमाई करने वाला व्यक्ति गरीब नहीं..अच्छी तरह से याद है जब ऐसा ही कुछ हुआ था जब योजना आयोग के मोंटेक सिंह अहलुवालिया ने ग़रीबी को रेखांकित करने के लिए सीमाएं निर्धारित की. ३२ रुपये ने हंगामा बरपाया…
आज फिर समय उसी तरह से ग़रीबी को गुजरात में परिभाषित कर रहा है. विपक्षी दल इस पर फिर से बाँहें चढ़ा रहे हैं. किन्तु मैं तब भी इस तरह की परिभाषाओं के खिलाफ था और आज भी हूँ.
आप सभी पाठक भी सम्मिलित हों चर्चा में और मार्गदर्शन करें.
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