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मानव समुदाय

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पृथ्वी पर बसे हुए मानव समुदायों का अध्ययन विज्ञान भी करता है…इतिहासकार भी … भूगोलवेत्ता और लगभग सभी विषयों  में मानव को आगे बढ़ने लिए सुलभ होने साधनों को ध्यान में रखते हुए ही अध्ययन आगे बढ़ा है.

प्राचीन भारत में ऋषियों -संतों -मनीषियों ने तप साधना पूर्वक मानव समुदायों के लिए सार रूप में अनेक बातें कही और संसार को मनन करते हुए जीने की राह दिखाई.

…ज्ञानार्जन और तकनीक के बल पर भारतीय समाज एक उन्नत समाज रहा और पूर्व में संसार की अनेक समाजों से बहुत अग्रणी रहा. भारत के लोगों अपनी तरक्की अपने सुदृढ़ होने का कभी भी नाजायज लाभ नहीं उठाया.
भारत में यह परंपरा चलती रही. वहीँ विश्व के मानव समुदाय आदिम युग में ही रहे. . . धीरे धीरे भारत वासियों से ज्ञान और संसार को समझ कर भारत के बाहर के मानवों ने बहुत गलत तरीके से विश्व की मानव सभ्यताओं को नष्ट किया उन के मूल रहन सहन और संस्कृति को ख़त्म किया …

उदाहरण हेतु चांदी को उस के अयस्क से अलग करने की प्रक्रिया निश्चित ही यहीं भारत से आगे बढ़ी होगी किन्तु स्पेन वासियों ने जब सीखी तो उस प्रक्रिया से पूरे संसार की खदानों से चांदी निकालने की बेहिसाब कोशिशें उन्होंने की …अमेरिका पहुंचे स्पेन वासियों ने वहां के लोगों को जबरदस्ती उस काम में लगाया …जमीन की ऊपरी परत में मौजूद चांदी जब ख़त्म होने लगी तब बचे हुए अयस्क से चांदी को अलग करना पुराने तरीके से संभव न रहा.

किन्तु नए तरीके खोज होने से जहाँ विज्ञान की दृष्टि से लाभ हुआ किन्तु वहीँ मानव सभ्यता हानि हुयी क्योंकि उस के बाद विश्व में उस तरीके को जगह लूट मचाने पहुंचे यूरोपवासियों ने अपनाया. लुटेरे समुदायों ने अपने मकसद को पूरा करने के लिए गुलाम खरीदने आरम्भ किये इस हेतु उन्होंने मध्य अफ्रीका वासियों को लालच दे कर उन्हें अपने ही लोगों यूरोप वासियों के हवाले किया …

इन्ही यूरोप वासियों ने जहां जहां कदम रखे पहले औद्योगिक क्रांति के नाम पर तो कभी विकासवाद का नारा दे कर नयी नयी परिपाटी आरम्भ की…जहां गए वहां लोगों को समझाया को जो कुछ यूरोप में हो रहा है वही मानव विकास की पराकाष्ठा है वैसे बाकियों को भी होना चाहिए…

जिन लोगों ने उनके विचार को आत्मसात कर लिया वह ”
“आधुनिक-प्रगतिवादी विवेकशील समाज के लोग” कहलाये..और जिन्होंने लुटेरों को अपने विचारों का मालिक नहीं बनाने दिया उन को लोगों गोलियों से उड़ा दिया..फांसी पर लटका दिया..

..इन्हीं आधुनिक-प्रगतिवादी विवेकशील समाज के लोग के वंशज अब दुनिया चला रहे हैं और अब ये उन लुटेरे यूरोप वासियों की धरोहर को संजोते हुए की भारत में अब भी कई लोग “ऑर्थोडॉक्स” हैं. “कट्टर” हैं …साम्प्रदायिक हैं.

“सेकुलर भव ” यह नारा बुलंद किये हुए हैं…तो कुछ लोग हैं जो इन “पृथ्वी पर बसे हुए मानव समुदायों का अध्ययन विज्ञान भी करता है…इतिहासकार भी … भूगोलवेत्ता और लगभग सभी विषयों  में मानव को आगे बढ़ने लिए सुलभ होने साधनों को ध्यान में रखते हुए ही अध्ययन आगे बढ़ा है.

प्राचीन भारत में ऋषियों -संतों -मनीषियों ने तप साधना पूर्वक मानव समुदायों के लिए सार रूप में अनेक बातें कही और संसार को मनन करते हुए जीने की राह दिखाई.

…ज्ञानार्जन और तकनीक के बल पर भारतीय समाज एक उन्नत समाज रहा और पूर्व में संसार की अनेक समाजों से बहुत अग्रणी रहा. भारत के लोगों अपनी तरक्की अपने सुदृढ़ होने का कभी भी नाजायज लाभ नहीं उठाया.
भारत में यह परंपरा चलती रही. वहीँ विश्व के मानव समुदाय आदिम युग में ही रहे. . . धीरे धीरे भारत वासियों से ज्ञान और संसार को समझ कर भारत के बाहर के मानवों ने बहुत गलत तरीके से विश्व की मानव सभ्यताओं को नष्ट किया उन के मूल रहन सहन और संस्कृति को ख़त्म किया …

उदाहरण हेतु चांदी को उस के अयस्क से अलग करने की प्रक्रिया निश्चित ही यहीं भारत से आगे बढ़ी होगी किन्तु स्पेन वासियों ने जब सीखी तो उस प्रक्रिया से पूरे संसार की खदानों से चांदी निकालने की बेहिसाब कोशिशें उन्होंने की …अमेरिका पहुंचे स्पेन वासियों ने वहां के लोगों को जबरदस्ती उस काम में लगाया …जमीन की ऊपरी परत में मौजूद चांदी जब ख़त्म होने लगी तब बचे हुए अयस्क से चांदी को अलग करना पुराने तरीके से संभव न रहा.

किन्तु नए तरीके खोज होने से जहाँ विज्ञान की दृष्टि से लाभ हुआ किन्तु वहीँ मानव सभ्यता हानि हुयी क्योंकि उस के बाद विश्व में उस तरीके को जगह लूट मचाने पहुंचे यूरोपवासियों ने अपनाया. लुटेरे समुदायों ने अपने मकसद को पूरा करने के लिए गुलाम खरीदने आरम्भ किये इस हेतु उन्होंने मध्य अफ्रीका वासियों को लालच दे कर उन्हें अपने ही लोगों यूरोप वासियों के हवाले किया …

इन्ही यूरोप वासियों ने जहां जहां कदम रखे पहले औद्योगिक क्रांति के नाम पर तो कभी विकासवाद का नारा दे कर नयी नयी परिपाटी आरम्भ की…जहां गए वहां लोगों को समझाया को जो कुछ यूरोप में हो रहा है वही मानव विकास की पराकाष्ठा है वैसे बाकियों को भी होना चाहिए…

जिन लोगों ने उनके विचार को आत्मसात कर लिया वह ”
“आधुनिक-प्रगतिवादी विवेकशील समाज के लोग” कहलाये..और जिन्होंने लुटेरों को अपने विचारों का मालिक नहीं बनाने दिया उन को लोगों गोलियों से उड़ा दिया..फांसी पर लटका दिया..

..इन्हीं आधुनिक-प्रगतिवादी विवेकशील समाज के लोग के वंशज अब दुनिया चला रहे हैं और अब ये उन लुटेरे यूरोप वासियों की धरोहर को संजोते हुए की भारत में अब भी कई लोग “ऑर्थोडॉक्स” हैं. “कट्टर” हैं …साम्प्रदायिक हैं.

“सेकुलर भव ” यह नारा बुलंद किये हुए हैं…तो कुछ लोग हैं जो पृथ्वी पर बसे हुए मानव समुदायों का अध्ययन विज्ञान भी करता है…इतिहासकार भी … भूगोलवेत्ता और लगभग सभी विषयों  में मानव को आगे बढ़ने लिए सुलभ होने साधनों को ध्यान में रखते हुए ही अध्ययन आगे बढ़ा है.

प्राचीन भारत में ऋषियों -संतों -मनीषियों ने तप साधना पूर्वक मानव समुदायों के लिए सार रूप में अनेक बातें कही और संसार को मनन करते हुए जीने की राह दिखाई.

…ज्ञानार्जन और तकनीक के बल पर भारतीय समाज एक उन्नत समाज रहा और पूर्व में संसार की अनेक समाजों से बहुत अग्रणी रहा. भारत के लोगों अपनी तरक्की अपने सुदृढ़ होने का कभी भी नाजायज लाभ नहीं उठाया.
भारत में यह परंपरा चलती रही. वहीँ विश्व के मानव समुदाय आदिम युग में ही रहे. . . धीरे धीरे भारत वासियों से ज्ञान और संसार को समझ कर भारत के बाहर के मानवों ने बहुत गलत तरीके से विश्व की मानव सभ्यताओं को नष्ट किया उन के मूल रहन सहन और संस्कृति को ख़त्म किया …

उदाहरण हेतु चांदी को उस के अयस्क से अलग करने की प्रक्रिया निश्चित ही यहीं भारत से आगे बढ़ी होगी किन्तु स्पेन वासियों ने जब सीखी तो उस प्रक्रिया से पूरे संसार की खदानों से चांदी निकालने की बेहिसाब कोशिशें उन्होंने की …अमेरिका पहुंचे स्पेन वासियों ने वहां के लोगों को जबरदस्ती उस काम में लगाया …जमीन की ऊपरी परत में मौजूद चांदी जब ख़त्म होने लगी तब बचे हुए अयस्क से चांदी को अलग करना पुराने तरीके से संभव न रहा.

किन्तु नए तरीके खोज होने से जहाँ विज्ञान की दृष्टि से लाभ हुआ किन्तु वहीँ मानव सभ्यता हानि हुयी क्योंकि उस के बाद विश्व में उस तरीके को जगह लूट मचाने पहुंचे यूरोपवासियों ने अपनाया. लुटेरे समुदायों ने अपने मकसद को पूरा करने के लिए गुलाम खरीदने आरम्भ किये इस हेतु उन्होंने मध्य अफ्रीका वासियों को लालच दे कर उन्हें अपने ही लोगों यूरोप वासियों के हवाले किया …

इन्ही यूरोप वासियों ने जहां जहां कदम रखे पहले औद्योगिक क्रांति के नाम पर तो कभी विकासवाद का नारा दे कर नयी नयी परिपाटी आरम्भ की…जहां गए वहां लोगों को समझाया को जो कुछ यूरोप में हो रहा है वही मानव विकास की पराकाष्ठा है वैसे बाकियों को भी होना चाहिए…

जिन लोगों ने उनके विचार को आत्मसात कर लिया वह ”
“आधुनिक-प्रगतिवादी विवेकशील समाज के लोग” कहलाये..और जिन्होंने लुटेरों को अपने विचारों का मालिक नहीं बनाने दिया उन को लोगों गोलियों से उड़ा दिया..फांसी पर लटका दिया..

..इन्हीं आधुनिक-प्रगतिवादी विवेकशील समाज के लोग के वंशज अब दुनिया चला रहे हैं और अब ये उन लुटेरे यूरोप वासियों की धरोहर को संजोते हुए की भारत में अब भी कई लोग “ऑर्थोडॉक्स” हैं. “कट्टर” हैं …साम्प्रदायिक हैं.

“सेकुलर भव ” यह नारा बुलंद किये हुए हैं…कुछ लोग हैं जो “आधुनिक-प्रगतिवादी विवेकशील समाज के लोगों” के बहकावे से बचने और उन से संभल कर रहने की जद्दोजहद में लगे हुए हैं किन्तु उन लोगों की संख्या कम  है. …कारण बस इतना है कि अधिकाँश लोग उस सत्य से विज्ञ ही नहीं है जो आधुनिक-प्रगतिवादी विवेकशील समाज के लोग अलग अलग तरीके सबको समझा गए …

“डिवाइड एंड रूल” नीति आधुनिक-प्रगतिवादी विवेकशील समाज के लोग भी उसी नीति से बचे हुए भारत को आधुनिक-प्रगतिवादी विवेकशील समाज में परिवर्तित कर देना चाहते हैं.

तो कौन कौन आधुनिक-प्रगतिवादी विवेकशील समाज के लोग बन जाने को तैयार हैं…?

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