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जब आग लगे तब कुआं खोदो

उद्गार
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सरकारी तंत्र …जब आग लगे तब कुआं खोदो …

आग अपने आप बुझे तो बुझे किन्तु कुएं खोद देने में कमीशन न मारा जाए ..और यदि कमीशन नहीं मिला तो फिर भाड़ में जाए दुनियादारी …कितने अफसर हैं जो वास्तव में योजनाओं को सही तरीके से समझ कर लागू करने को इच्छुक हैं..अव्वल तो किसी भी जन हित के कार्य को अंजाम देंगे नहीं और यदि किसी तरह मान भी गए तो पहले अपना उल्लू सीधा करेंगे..

रही सही कसर अफसरों की आपसी खींचतान से पूरी हो जाती है ..हर कोई बॉस के सामने अपने लिए अच्छी छवि बना लेना चाहता है . चाहे काम धेले का न हो पर काम होता हुआ दिखे ..

जब बात जिम्मेदारी की उठे तो बड़ा अफसर छोटे अफसर पर थोपेगा…छोटा अफसर अपने मातहतों को धमकाएगा. मातहत अपने सिर काम के बोझ को रोयेगा..

और फिर बात आकर व्यवस्था पर ठहर जायेगी..

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