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नव वर्ष की प्रासंगिकता

उद्गार
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अक्सर हम देखते हैं कि लोग एक दूसरे को पहली जनवरी के दिन नव वर्ष की बधायियाँ देते हैं | कई लोग इसे एक “”शुभ अवसर” भी मान लेने की भूल कर बैठते हैं | लोग एक दूसरे को “न्यू इयर पार्टी” पर आने का न्योता देते हैं | कामकाजी लोगों के लिए अपने अपने ढंग से बॉस को सन्देश पहुंचाने का बहाना मिल जाता है | और अधिकाँश लोग बिना कुछ जाने समझे ही “हैप्पी न्यू इयर” के नाम पर हौव्वा खडा कर देते हैं ख़ास तौर पर मीडिया के पत्रकार बंधू | इन्हें जनसामान्य को यह सन्देश देना चाहिए था कि भारतीय लोग इस काल गणना से केवल तनख्वाह पाते हैं | इस काल गणना से भारतीयों के कोई रीति रिवाज़ संस्कृति खान पान पहनावा खेती मौसम कुछ भी सम्बन्ध नहीं रखता | लेकिन खेद की बात है मीडिया खुद विदेशी हवा के झोंकों में बह रहा है तो मीडिया बंधू कैसे जन सामान्य में यह सामान्य सी चेतना जगाते ?
आज कई लोग यही नहीं जानते हैं कि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन भारतीय नव संवत्सर अर्थात वर्ष का प्रथम दिवस होता है | पौष मॉस में ठिठुरती सर्दी में कंपकपाते हुए हाथों से हैप्पी न्यू इयर कहने वालों में , जाने कौन सा उमंग जागता है ?? नव वर्ष का सम्बन्ध ऋतु चक्र से भी है | भारतीय नव वर्ष जब आता है बसंत ऋतु का समय होता है | प्रकृति स्वयं उस समय पर उठ कड़ी होती है और अनेक रंगों से हमें दृश्य जगत को देखने का मौका देती है |
विदेशी संस्कृति का प्रभाव देखिये नव युवक इस विदेशी / सरकारी नव वर्ष पर मदिरा मांस का सेवन करते हैं | अपनी सीमा में रह करें किसे आपत्ति होगी लेकिन “न्यू इयर” की धूम सबको दिखाने के चक्कर में वे नुकसान अधिक पहुंचाते हैं |
ऐसे में यह ढकोसले के नव वर्ष की प्रासंगिकता समझ से परे है |

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